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पेठे की खेती/पेठा फल कहां मिलता है पेठे की बुवाई कब होती है? Pethe ki kheti

  पेठा की खेती

परिचय: पेठा (सफेद कद्दू) के नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश का आगरा मशहूर जिला जहां लोग ताजमहल देखने जाते हैं तो रंग-बिरंगे विभिन्न प्रकार के पेठे की मिठाई से पहचान होती है। पेठे की मांग देश के सभी कोनों में है और यह बाजारों में नारियल पेठा, सूखा पेठा,टूटी फ्रूटी, कई नामों से जाना जाता है।

जागरूकता ना होने के कारण पेठा की खेती बहुत ही कम या छोटे स्तर पर हो रही हैं क्योंकि इसकी मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं हो पाता है और इसकी सब्जी के रूप में बहुत ही कम प्रयोग किया जाता है पेठा या सफेद कद्दू का मुख्य उत्पाद सूखी मिठाई यानी पेठा के रूप में ही होता है और यह लंबे समय तक अपने घरों में सुरक्षित रख सकते हैं।

मिट्टी: पेठा की खेती के लिए सबसे सर्वोत्तम दोमट मिट्टी या बलुई दोमट मिट्टी बहुत ही अच्छी मानी जाती है।

                                                                                     

खेत की तैयारी: पेठा की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करनी चाहिए तथा दो से तीन जुताई कल्टीवेटर, हैरो या रोटावेटर से करने के पश्चात पाटा अवश्य लगा देना चाहिए।

उन्नतशील प्रजातियां: CO1, CO2, उषा उज्जवल,काशी उज्जवल, MH1, पूसा हाइब्रिड 1, हरका चंदन आदि।

बीज उपचार: पेठा की फसल को रोगों से बचाने के लिए कार्बेंडाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज का उपचार करके बुवाई करना चाहिए।

बीज दर: पेठा की फसल के लिए 2 से 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है।

खाद एवं उर्वरक: पेठा या सफेद कद्दू के बुवाई के समय 80: 80: 40 kg के अनुपात में नाइट्रोजन ,फास्फोरस ,पोटाश की आवश्यकता होती है नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई से पहले जब खेत की तैयारी करते समय प्रयोग करनी चाहिए तथा बची हुई मात्रा को दो से तीन बार में टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।

सिंचाई: पेठा की फसल में सूखे की स्थिति में 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए तथा वर्षा ऋतु के समय वर्षा के अनुसार सिंचाई करना चाहिए।

कीट एवं रोग नियंत्रण: भुंडी,चेपा, मांहूं तथा पत्तों का धब्बा रोग, पत्तों के निचले हिस्से पर धब्बा रोग यदि यह कीट रोग फसल में दिखाई दें तो उसके नियंत्रण के लिए कार्बेंडाजिम 0.5 ग्राम दवा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें अथवा मैनकोज़ेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए जिससे कीट रोग से होने वाले नुकसान से बचा जा सके।

फसल उत्पादन: बुवाई के 90 से 110 दिन में देखेंगे कि फलों पर हल्की-हल्की सफेद परत दिखाई देने लगती है तो यह समझ जाएं कि पेठा या सफेद कद्दू की फसल पक कर तैयार हो गई हैं। और फलों की तुड़ाई का उपयुक्त समय हो गया तो फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए तथा उत्पादन की बात करें तो लगभग 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त होती है। इस खेती में लागत बहुत ही कम आती है और उत्पादन अच्छा प्राप्त होता हैं।

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शुद्ध लाभ: मंडी का भाव या पेठा का रेट लगभग 800 से 1200/ क्विंटल रहता है यह भाव अलग-अलग स्थानों पर कम या ज्यादा भी हो सकता है । अतः 4.50 लाख से 5.50लाख रुपए की शुद्ध आय प्राप्त होती है।

किसान भाइयों पेठे की खेती के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है इसको पढ़कर और अपने आसपास जहां पर इसकी खेती और बिक्री होती है वहां पर एक बार जाएं और देखें क्योंकि इसमें लागत कम आती है और कीट रोग तथा छुट्टा पशुओं के द्वारा होने वाले नुकसान भी कम है। और मुनाफा अच्छा होता है यदि ऐसे ही और नई नई फसलों के बारे में जानकारी चाहिए हो तो आप सभी लोग कमेंट अवश्य करें। आशा करता हूं कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी।
धन्यवाद।

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